ऐ सफ़-ए-मिज़्गाँ तकल्लुफ़ बर-तरफ़
ऐ सफ़-ए-मिज़्गाँ तकल्लुफ़ बर-तरफ़ देखती क्या है उलट दे सफ़ की सफ़ देख वो गोरा सा मुखड़ा रश्क से पड़ गए हैं माह के मुँह पर कलफ़ आ गया जब बज़्म में वो शोला-रू शम्अ तो बस हो गई जल कर तलफ़ साक़ी भी यूँ जाम ले कर रह गया जिस तरह तस्वीर हो साग़र-ब-कफ़

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