ताबाँ जो नूर-ए-हुस्न ब-सिमा-ए-इश्क़ है
ताबाँ जो नूर-ए-हुस्न ब-सिमा-ए-इश्क़ है किस दर्जा दिल-पज़ीर तमाशा-ए-इश्क़ है अरबाब-ए-होश जितने हैं बीमार-ए-अक़्ल हैं उन के लिए ज़रूर मुदावा-ए-इश्क़ है मैं क्या हूँ एक ज़र्रा-ए-सहरा-ए-इश्तियाक़ दिल क्या है एक क़तरा-ए-दरिया-ए-इश्क़ है शाह ओ गदा का फ़र्क़ नहीं अहद-ए-हुस्न में अब जिस को देखिए उसे दावा-ए-इश्क़ है ज़ाहिर है बे-क़रारी-ए-पैहम से हाल-ए-दिल बेकार हम को दावा-ए-इख़्फ़ा-ए-इश्क़ है पिन्हाँ हिजाब-ए-नाज़ में है सूरत-ए-जमाल पैदा हुरूफ़-ए-शौक़ से माना-ए-इश्क़ है ऐ अह्ल-ए-अक़्ल क्यूँ हो उसे फ़िक्र-ए-नाम-ओ-नंग 'हसरत' ख़राब-ए-इश्क़ है रुस्वा-ए-इश्क़ है

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