दीदनी हैं दिल-ए-ख़राब के रंग
दीदनी हैं दिल-ए-ख़राब के रंग आह उस चश्म-ए-पुर-हिजाब के रंग फ़स्ल-ए-गुल में पड़ें तो ख़ूब खिलें ख़िर्क़ा-ए-ज़ोहद पर शराब के रंग शौक़-ए-मय दिल में लब पे हिजव-ए-शराब हम पे रौशन हैं सब जनाब के रंग नहीं तौबा की ख़ैर हैं जो यही जोश-ए-हंगामा-ए-सहाब के रंग कल के मक़्बूल आज हैं मरदूद आह इस दौर-ए-इंक़िलाब के रंग क़ाबिल-ए-दीद हैं विसाल की शब आरज़ू-हा-ए-कामयाब के रंग चेहरा-ए-आशिक़ी है पज़-मुर्दा क्या हुए वो मय-ए-शबाब के रंग ख़ैल-ए-ख़ूबाँ से एक में भी नहीं आप के हुस्न-ए-ला-जवाब के रंग मेरी मायूसियों से हैं पैदा कशमकश-हा-ए-इज़्तिराब के रंग दिल के हाथों बहुत रहे हैं ख़राब 'हसरत'-ए-ख़ानुमाँ ख़राब के रंग

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