दिल को ख़याल-ए-यार ने मख़्मूर कर दिया
दिल को ख़याल-ए-यार ने मख़्मूर कर दिया साग़र को रंग-ए-बादा ने पुर-नूर कर दिया मानूस हो चला था तसल्ली से हाल-ए-दिल फिर तू ने याद आ के ब-दस्तूर कर दिया गुस्ताख़-दस्तियों का न था मुझ में हौसला लेकिन हुजूम-ए-शौक़ ने मजबूर कर दिया कुछ ऐसी हो गई है तेरे ग़म में मुब्तिला गोया किसी ने जान को मसहूर कर दिया बेताबियों से छुप न सका माजरा-ए-दिल आख़िर हुज़ूर-ए-यार भी मज़कूर कर दिया अहल-ए-नज़र को भी नज़र आया न रू-ए-यार याँ तक हिजाब-ए-नूर ने मस्तूर कर दिया 'हसरत' बहुत है मर्तबा-ए-आशिक़ी बुलंद तुझ को तो मुफ़्त लोगों ने मशहूर कर दिया

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