दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर न हुई
दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर न हुई कोई तदबीर कारगर न हुई कोशिशें हम ने कीं हज़ार मगर इश्क़ में एक मो'तबर न हुई कर चुके हम को बे-गुनाह शहीद आप की आँख फिर भी तर न हुई ना-रसा आह-ए-आशिक़ाँ वो कहाँ दूर उन से जो बे-असर न हुई आई बुझने को अपनी शम-ए-हयात शब-ए-ग़म की मगर सहर न हुई शब थे हम गर्म-ए-नाला-हा-ए-फ़िराक़ सुब्ह इक आह-ए-सर्द सर न हुई तुम से क्यूँकर वो छुप सके 'हसरत' निगह-ए-शौक़ पर्दा दर न हुई

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