उलटी गंग बहाइओ रे साधो, तब हर दरसन पाए
उलटी गंग बहाइओ रे साधो, तब हर दरसन पाए । प्रेम दी पूनी हाथ में लीजो, गुझ्झ मरोड़ी पड़ने ना दीजो । गयान का तक्कला ध्यान का चरखा, उलटा फेर भुवाए । उलटे पाउं पर कुंभकरन जाए, तब लंका का भेद उपाए । दैहंसर लुट्ट्या हुन लछमन बाकी, तब अनहद नाद बजाए । इह गत गुर की पैरों पावें, गुर का सेवक तभी सदाए । अंमृत मंडल मूं तब ऐसी दे, कि हरी हरि हो जाए । उलटी गंग बहाइओ रे साधो, तब हर दरसन पाए ।

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