आज सड़कों पर
‎आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख, पर अन्धेरा देख तू आकाश के तारे न देख । एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ, आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख । अब यकीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह, यह हक़ीक़त देख लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख । वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे, कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख । ये धुन्धलका है नज़र का तू महज़ मायूस है, रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख । राख़ कितनी राख़ है, चारों तरफ बिख़री हुई, राख़ में चिनगारियाँ ही देख अंगारे न देख ।

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