सुनो तुम इश्क की बाज़ी, मलायक है कहां राज़ी,
यहां बिरहों पर है गाज़ी, वेखां फिर कौन हारेगा ।
साजन की भाल हुन होई, मैं लहू नैन भर रोई,
नच्चे हम लाह कर लोई, हैरत के पत्थर मारेगा ।
महूरत पूछ कर जाऊं, साजन को देखने पाऊं,
उसे मैं ले गले लाऊं, नहीं फिर खुद गुज़ारेगा ।
इश्क की तेग़ से मूई, नहीं वोह ज़ात की दूई,
और पिया पिया कर मूई, मोयां विच रूह चितारेगा ।
साजन की भाल सर दिया, लहू मध अपना पिया,
कफ़न बाहों से सी लिया, लहद में पा उतारेगा ।
बुल्ल्हा शहु इश्क है तेरा, उसी ने जी लिया मेरा,
मेरे घर बार कर फेरा, वेखां सिर कौन वारेगा ।