नी मैं हुन सुण्या इश्क शर्हा की नाता
नी मैं हुन सुण्या इश्क शर्हा की नाता । मुहब्बत दा इक प्याला पी, भुल्ल जावन सभ बातां, घर घर साईं है उह साईं, हर हर नाल पछाता । अन्दर साडे मुरशद वस्सदा, नेहुं लग्गा तां जाता, मंतक माअने कन्नज़ कदूरी, पढ़आ इलम गवाता । नमाज़ रोज़ा ओस की करना, जिस मध पीती मधमाता, पढ़ पढ़ पंडित मुल्लां हारे, किसे ना भेद पछाता । ज़री बाफ़दी कदर की जाणे, छट्ट ओनां जत काता, बुल्ल्हा शहु दी मजलस बह के, हो गया गूंगा बाता । नी मैं हुन सुण्या इश्क शर्हा की नाता ।

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