मेरे क्युं चिर लाइआ माही
मेरे क्युं चिर लाइआ माही । नी मैं उस तों घोल-घुमाई । दरद फ़िराक बथेरा करिआ, इह दुक्ख मैथों जाए ना जरिआ, टमक असाडे सिर ते धरिआ, डोई बुग़चा लोह कड़ाही । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । जागद्यां मैं घर विच मुट्ठी, कदी नहीं सां बैठी उट्ठी, जिस दी सां मैं ओसे कुट्ठी, हुन की कर ल्या बेपरवाही । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । बुल्ल्हा शहु तेरे तों वारी, मैं बलेहारी लक्ख लक्ख वारी, तेरी सूरत बहुत प्यारी, मैं वे बिचारी घोल घुमाई । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । मेरे माही दे पंज पीर पनाही, ढूंडन उस नूं विच लोकाई, मेरे माही ते फ़ज़ल इलाही, जिस ने गैबों तार हिलाई । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । कुन फ़ैकून आवाज़ा आया, तख़त हज़ार्युं रांझा धाइआ, 'चूचक' दा उस चाक सदाइआ, उह आहा साहब सफ़ाई । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । चल्ल रांझा मुलतान चलाहें, गौश बहावल पीर मनावें, आपनी तुरत मुराद ल्यावें, मेरा जी रब्ब मौला चाही । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । जित्थे इश्क डेरा घत बहन्दा, ओथे सबर करार ना रहन्दा, कोई छुटकन ऐवें कहन्दा, गल पई प्रेम दी फाही । मेरे क्युं चिर लाइआ माही आ जंञ खेड़िआं दी ढुकी, मैं हुन हीर निमानी मुक्की, मेरी रत्त सरीरों सुक्की, वल वल मारे बिरहों खाई । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । खेड़ा फुल्ल घोड़े ते चढ़आ, फक्कर धूड़ गरद विच रल्या, एडा मान क्युं कूड़ा करिआ, उस कीती बेपरवाही । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । चढ़ के पीर खेड़िआं दा आया, उस ने केहा शोर मचाइआ, मैनूं माही नज़र ना आया, तांहीएं कीती हाल दुहाई । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । मैं माही दी माही मेरा, गोशत पोसत बेरा-बेरा, दिन हशर दे करसां झेड़ा, जद देसी दाद इलाही । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । चूचक काज़ी सद बहाइआ, मैं मन रांझू माही भाइआ, धक्को धक्क निकाह पढ़ाइआ, उस कीता फ़रज़ अदाई । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । तेल वटना कंधे मल्या, चोया चन्दन मत्थे रल्या, माही मेरा बेले वड़िआ, मैं की करनी कंङन बाही । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । होर सभ्भो कुझ दस्सन करिआ, इह दुक्ख जाए ना मैथों जरिआ, टमक रांझन दे सिर ते धरिआ, मोढे बुग़चा लोह कड़ाही । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । टमक सुट्ट टिल्ले वल जावे, बैठा उस दा नाम ध्यावे, कन्न पड़वा के मुन्दरां पावे, गुड़ लै के दो सेर शाही । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । गुर गोरख नूं पीर मनावे, हीरे हीरे कर कुरलावे, जिस दे कारन मूंड मुंडावे, उह मूंह पीला ज़रद मलाही । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । जोगी जोग सिधारन आया, सिर दाढ़ी मूंह मोन मुनाइआ, इस ते भगवा भेस वटाइआ, काली सेहली गल विच पाई । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । जोगी शहर खेड़िआं दे आवे, जिस घर मतलब से घर पावे, बूहे जा के नाद बजावे, आपे होया फ़ज़ल इलाही । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । बूहे पे खुड़ब्यां धङाणे, टुट्ट प्या खप्पर डुल्ल्ह पे दाणे, इस दे वल छल कौन पछाणे, चीना रुल्ल गया विच पाही । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । चीना चुन चुन झोली पावे, बैठा हीरे तरफ़ तकावे, जो कुझ लिख्या लेख सो पावे, रो रो लड़दे नैन सिपाही । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । इह गल्ल सहती ननद पछाती, दोहां दी वेदन इक्को जाती, उह वी आही सी मदमाती, ओथे दोहवां सत्थर पाही । मेरे क्युं चिर लाइआ माही । बुल्ल्हा सहती फन्द चलाइआ, हीर सलेटी नाग लड़ाइआ, जोगी मंतर झाड़न आया, दुहां दी आस मुराद पुचाई । मेरे क्युं चिर लाइआ माही ।

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