मन अटकियो शाम सुन्दर सों
कहूं वेखूं बाहमन कहूं सेखा, आप आप करन सभ लेखा, क्या क्या खोलिआ हुनर सों । मन अटकियो शाम सुन्दर सों । सूझ पड़ी तब राम दुहाई, हम तुम एक ना दूजा काई, इस प्रेम नगर के घर सों । मन अटकियो शाम सुन्दर सों । पंडित कौन कित लिख सुणाए, ना कहीं आए ना कहीं जाए, जैसे गुर का कंगन कर सों । मन अटकियो शाम सुन्दर सों । बुल्ल्हा शहु दी पैरीं पड़ीए, सीस काट कर आगे धरीए, हुन मैं हर देखा हर हर सों । मन अटकियो शाम सुन्दर सों ।

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