क्यों लड़ना हैं क्यों लड़ना हैं ग़ैर गुनाही
क्यों लड़ना हैं क्यों लड़ना हैं ग़ैर गुनाही । लातत्तहर्रक खुद लिख्यो ई किस नूं देना एं फाही । शर्हा ते अहल कुरान भी आहे, असीं अग्गे सद्दे आई । अलसतुबरब्बुकम वारद होया, कालूबला धुंम पाई । कुनफईकून अवाज़ा होया, तदां असां भी कोलों आही । लज़्ज़त मार दीवानी कीती नहीं जाती असली आही । क्यों लड़ना हैं क्यों लड़ना हैं ग़ैर गुनाही ।

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