ख़ाकी ख़ाक स्युं रल जाणा
ख़ाकी ख़ाक सूं (स्युं) रल जाणा कुछ नहीं ज़ोर धिङाना । गए सो गए फेर नहीं आए, मेरे जानी मीत प्यारे, मेरे बाझों रहन्दे नाहीं, हुन क्यों असां विसारे, ख़ाकी ख़ाक सूं (स्युं) रल जाना । चित प्यार ना जाए साथों, उभ्भे साह ना रहन्दे, असीं मोयां दे परले पार, ज्यूंद्यां दे विच बहन्दे, ख़ाकी ख़ाक सूं (स्युं) रल जाना । ओथे मगर प्यादे लग्गे, तां असीं एथे आए, एथे सानूं रहन ना मिलदा, अग्गे कित वल धाए, ख़ाकी ख़ाक सूं (स्युं) रल जाना । बुल्ल्हा एथे रहन ना मिलदा, रोंदे पिटदे चल्ले, इको नाम ओसे दा ख़रची, पैसा होर ना पल्ले, ख़ाकी ख़ाक सूं (स्युं) रल जाणा ना कर ज़ोर धिङाना ।

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