जिचर ना इश्क मजाज़ी लागे
जिचर ना इश्क मजाज़ी लागे । सूई सीवे ना बिन धागे । इश्क मजाज़ी दाता है । जिस पिच्छे मसत हो जाता है । इश्क जिन्हां दी हड्डीं पैंदा, सोई निरजीवत मर जांदा, इश्क पिता ते माता है, जिस पिच्छे मसत हो जाता है । आशक दा तन सुक्कदा जाए, मैं खड़ी चन्द पिर के साए, वेख मशूकां खिड़ खिड़ हासे, इश्क बेताल पढ़ाता है । जिस ते इश्क इह आया है, उह बेबस कर दिखलाइआ है, नशा रोम रोम में आया है, इस विच ना रत्ती उहला है, हर तरफ दसेंदा मौला है, बुल्ल्हा आशक वी हुन तरदा है, जिस फिकर पिया दे घर दा है, रब्ब मिलदा वेख उचरदा है । मन अन्दर होया झाता है । जिस पिच्छे मसत हो जाता है ।

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