इह दुख जा कहूं किस आगे
इह दुख जा कहूं किस आगे, रोम रोम घा प्रेम के लागे । इक मरना दूजा जग्ग दी हासी । करत फिरत नित्त मोही रे मोही । कौण करे मोहे से दिलजोई । शाम पिया मैं देती हूं धरोई । दुक्ख जग्ग के मोहे पूछन आए । जिन को पिया परदेस सिधाए । ना पिया जाए ना पिया आए । इह दुक्ख जा कहूं किस जाए । बुल्ल्हा शाह घर आ प्यारिआ । इक घड़ी को करन गुज़ारिआ । तन मन धन जिया तैं पर वारिआ । इह दुख जा कहूं किस आगे, रोम रोम घा प्रेम के लागे ।

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