इह अचरज साधो कौण कहावे
इह अचरज साधो कौण कहावे । छिन छिन रूप कितों बण आवे । मक्का लंका सहदेव के भेत, दोऊ को एक बतावे । जब जोगी तुम वसल करोगे, बांग कहै भावें नाद वजावे । भगती भगत नतारो नाहीं, भगत सोई जेहड़ा मन भावे । हर परगट परगट ही देखो, क्या पंडत फिर बेद सुनावे । ध्यान धरो इह काफ़र नाहीं, क्या हिन्दू क्या तुर्क कहावे । जब देखूं तब ओही ओही, बुल्ल्हा शौह हर रंग समावे । इह अचरज साधो कौण कहावे । छिन छिन रूप कितों बण आवे ।

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