अगर ख़ुदा न करे सच ये ख़्वाब हो जाए
अगर ख़ुदा न करे सच ये ख़्वाब हो जाए तेरी सहर हो मेरा आफ़ताब हो जाए हुज़ूर! आरिज़ो-ओ-रुख़सार क्या तमाम बदन मेरी सुनो तो मुजस्सिम गुलाब हो जाए उठा के फेंक दो खिड़की से साग़र-ओ-मीना ये तिशनगी जो तुम्हें दस्तयाब हो जाए वो बात कितनी भली है जो आप करते हैं सुनो तो सीने की धड़कन रबाब हो जाए बहुत क़रीब न आओ यक़ीं नहीं होगा ये आरज़ू भी अगर कामयाब हो जाए ग़लत कहूँ तो मेरी आक़बत बिगड़ती है जो सच कहूँ तो ख़ुदी बेनक़ाब हो जाए

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