बेतुकी बातें - 1
जब लगा तार तार ही टूटा। और झनकार फूट कर रोई। जब कि बोली न बोल की तूती। किसलिए बीन तब बजी कोई।1। जो निछावर हुई नहीं तितली। जो न भर भाँवरें भँवर भूला। रंग बू है अगर नहीं रखता। तो कहीं फूल किसलिए फूला।2। सुन उसे सिर धुना अगर धुन ने। और खट राग राग को भाया। सुर अगर बे सुरे बने सारे। किसलिए गीत तो गया गाया।3। एक पत्ता हरा न हो पाया। पर गये सब खिले गुलाब झुलस। देखिए ये उठे हुए बादल। किस तरह का बरस रहे हैं रस।4। क्यों गँवाएँ न हाथ के हीरे। भूल पर भूल है अगर होती। किसलिए लोग मूँद कर आँखें। पोत को हैं बता रहे मोती।5। हैं न वैसे हरे भरे पौधे। फूल में हैं न रंगतें वैसी। है कहाँ वह बहार बागों में। आज है बह रही हवा कैसी।6। देख करके जमाव कौओं का। पत्तियों में न क्यों छिपे जाते। है मचा काँव काँव कुछ ऐसा। पिक कहीं कूकने नहीं पाते।7। देख उनकी लुभावनी चालें। हो गये खीज खीज कर पगले। चोंच अपनी चला चला करके। हंस को नोच हैं रहे बगुले।8। इस तरह क्यों उठा रहे हो सिर। किसलिए हो बहुत बढ़े जाते। जो तुम्हें पालती नहीं मिट्टी। पेड़ तो तुम पनप नहीं पाते।9। भूल है मत हँसी करो उसकी। रूप औ रंग मिल सके जिस से। धूल की धूल क्यों उड़ाते हो। पा सके फूल तुम महँक किससे।10।

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