एक भिखारी
चाल चल चल कर के कितनी। मैं नहीं माल मूसता हूँ। घिनाये क्यों मुझसे कोई। मैं नहीं लहू चूसता हूँ।1। फटे कपड़े मेरे होवें। भाग मेरा होवे फूटा। बता दो लोट पोट कर कब। किसी का घर मैंने लूटा।2। दाँत मेरे निकले होवें। पर कभी नहीं उखड़ता हूँ। मिले कौड़ी न, कौड़ियों को। दाँत से नहीं पकड़ता हूँ।3। पेट मैं दिखलाता होऊँ। पर न है पेट पाप-थैला। भले ही तन मैला होवे। नहीं है मन मेरा मैला।4। आँख नीची मैं रखता हूँ गिने है सबको ऊँचा मन। नहीं दिखलाता हूँ नीचा। आँख ऊँची कर ऊँचा बन।5। आप मैं पिसता रहता हूँ। बहुत गत बनती है मेरी। मगर कब मेरे हाथों से। गयी जनता पिसी पेरी।6। ठोकरें खाता फिरता हूँ। सिसिकती रहती हैं माँखें। लहू कब किस का करती हैं। लहू बन बन मेरी आँखें।7। बुरी सूरत होवे मेरी। धूल से भर जाता हो तन। कभी मन मेरा फूँ फँ कर। नहीं बन सका साँप का फन।8। कलेजा मेरा छिलता है। गत बनी आँखों के तिल की। कहाँ मेरे मुँह से निकली। सड़ी बू सड़े हुए दिल की।9। सदा मैं भूखों मरता हूँ। पर कहाँ दिल में है कीना। दुही मैंने किस की पोटी। कौर किस के मुँह का छीना।10।

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