भिखारिणी
उमगती हँसती आती हूँ। अनूठा गजरा लाती हूँ। भरा आँखों में हो आँसू मगर मोती बरसाती हूँ।1। बाल हों बुरी तरह फैले। अंग होवें मेरे मैले। फटे सारे कपड़े होवें मगर फूली न समाती हूँ।2। ठोकरें पर ठोकर खाऊँ। निकाली घर घर से जाऊँ। गालियाँ सुनूँ लगें धक्के रंग में अपने माती हूँ।3। बन्द होवें सुख की राहें। धूल में मिल जाएँ चाहें। उमंगें हों मेरी पिसती गीत मन माने गाती हूँ।4। यहाँ हैं कहाँ आँख वाले। लोग हैं अंधो मतवाले। मतलबों के कीड़े सब हैं भेद यह मैं बतलाती हूँ।5। नाम की चाह किसी को है। काम की चाह किसी को है। चाम पर भूला है कोई भला मैं किस को भाती हूँ।6। कौड़ियाले घर घर पाये। लहू के प्यासे दिखलाये। कलेजा खाते हैं कितने कब न मैं मुँह की खाती हूँ।7। दया किसमें दिखलाती है। पिघलती किसकी छाती है। किसी को मिट्टी का पुतला किसी को पत्थर पाती हूँ।8। दुखों से घिरती रहती हूँ। बुरी आँचें मैं सहती हूँ। बे तरह जलती भुनती हूँ कहाँ मैं आग लगाती हूँ।9। किसी का दिल न दुखाती हूँ। सभी का भला मनाती हूँ। किसी पर फूल बखेरे हैं किसी को हार पिन्हाती हूँ।10।

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