कसकते काँटे
बुरे रंगों में जो रँग दें। न जी में उठें तरंगें वे। भरी बदबू से जो होवें। धूल में मिलें उमंगें वे।1। दिखाते बने न जिससे मुँह। न होवे ऐसी मनमानी। क्यों उठें वे लहरें जी में। उतर जाय जिससे पानी।2। मान अपने जी की बातें। बाप के दिल को क्यों मसले। नागिनों सी बल खा खा कर। आँख की पुतली क्यों डँस ले।3। प्यार से पाली पोसी क्यों। बला जैसी सिर पर टूटे। कोख को कोस कोस कर माँ। क्यों कलेजा अपना कूटे।4। हतक क्यों ऐसी हो जिससे। जाय तन बिन मरजादा तन। सुन जिसे लोग कान मूँदें। जाति की नीची हो गरदन।5। किसलिए लगे लगन ऐसी। भरे होवें जिसमें चसके। किसी परिवार कलेजे में। सदा जो काँटों सा कसके।6। अछूता क्यों न उसे छोड़ें। जवानी की छिछली छूतें। हिला दें क्यों समाज का दिल। किसी की काली करतूतें।7। रँग रलियों में जो डूबी। जायँ जल ऐसी सुख चाहें। लगा दें आग देश में जो। खुलें क्यों ऐसी रस राहें।8। पड़े जिस पर भद्दे धब्बे। वह चलन चादर चिथड़े हो। बनें जिससे पड़ोस गन्दे। क्यों न वह तन सौ टुकड़े हो।9। मन उड़ा उड़ा फिरे जिससे। जाय जिससे तन में लग घुन। उमंगों भरे किसी जी में। समा जाये क्यों ऐसी धुन।10। धुनों पर क्यों मतवाली हो। क्यों न सुर तालों को जाँचें। किसी बे सुरे राग पर क्यों। चाहतें नंगी हो नाचें।11।

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