देख भाल
टल सकी किस की मुसीबत की घड़ी। है बला किस के नहीं सिर पर खड़ी।1। आदमी जिससे कि जीता ही रहे। मिल सकी कोई नहीं ऐसी जड़ी।2। दिल छिले, उस के लगे, साटे पड़े। हो भले ही फूल की कोई छड़ी।3। जब लड़ी है मोतियों की टूटती। आँख से तब आँख कोई क्या लड़ी।4। बेतरह दिल भर अगर आता नहीं। आँसुओं की किस तरह लगती झड़ी।5। किसलिए दिल खोल कर मिलते न तो। गाँठ जो होती नहीं जी में पड़ी।6। पीस देती पाँतियाँ हैं दाँत की। किस तरह वे मोतियों की हैं लड़ी।7। जाति ही है तंग करती जाति को। जब गड़ी तब आँख आंखों में गड़ी।8। भाग वाले का चमकता भाग है। हर अंगूठी है कहाँ हीरे जड़ी।9। तीन काने की करें परवा न तो। आन कर बाजी अगर पौ पर अड़ी।10। कर दिखाएँ काम वे कैसे बड़ा। है बड़ों की बात ही होती बड़ी।11। आंख से चिनगारियाँ निकलें न क्यों। हैं कलेजे से सही आंचें कड़ी।12। जब किसी जी में भरी है गन्दगी। क्यों न मुँह से बात तब निकले सड़ी।13। हेकड़ी वह काम की होती नहीं। हाथ में पड़ जाय जिससे हथकड़ी।14। देख रंगत किसलिए है फूलती। जब कि मिलती धूल में है पंखुड़ी।15।

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