कामना
बन सकें, सब दिन उतना ही। दिखाते हैं सब को जितना। सभी जिससे नीचा देखे। न माथा ऊँचा हो इतना।1। वार पर वार न कर पाये। न लहू पी कर हो सेरी। न बन जाएँ तलवारों सी। भवें टेढ़ी हो कर मेरी।2। भरें दामन उन दुखियों का। सदा जो दानों को तरसें। ग़रीबों के गाँव के जो हों। आँख से मोती वे बरसें।3। सुने तो दुखियों के दुखड़े। न भर देने से भर जाये। आह को रहे कान करता। कान जो खोले खुल पाये।4। बने क्यों कोई जी खट्टा। बात मीठी ही कह पाये। रस भरा है जिस में उस पर। जीभ क्यों राल न टपकाये।5। गड़े क्यों सोच सोच कर यह। नाम बिकता है तो बिक ले। अनारों के दानों सा रस। पिलाते रहें दाँत निकले।6। फूल से हैं तो सुख देवें। फूल जैसा खिल खिल करके। न दहलाएँ औरों का दिल। होठ मेरे हिल हिल करके।7। चाँदनी जलतों पर छिड़के। सोत रस की ही कहलावे। हँसा देवे जो रोतों को। हँसी वह होठों पर आवे।8। निकाले दिल की कसरों को। भूल जाये मेरा तेरा। खोल दे जी की गाँठों को। खुले जो खोले मुँह मेरा।9। प्यार के हाथों से गुँथा कर। गलों में गजरे बनकर पड़ें। खिला दें जी की कलियों को। फूल जो मेरे मुँह से झड़ें।10।

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