आँसू - 1
बहुत ही हम घबराते हैं। कलप कर के रह जाते हैं। कलेजा जब दुख जाता है। आँख में आँसू आते हैं।1। बे तरह दुख से घिरते हैं। आँख से तो क्यों गिरते हैं। क्यों भरम खो करके अपना। आँख में आँसू फिरते हैं।2। दुखों पर दुख सहते देखे। मुसीबत में रहते देखे। कलेजा कभी नहीं पिघला। बहुत आँसू बहते देखे।3। कौन सुख की नींदों सोता। किस तरह सारे दुख खोता। आग जी की कैसे बुझती। जो न आँखों का जल होता।4। पसीजे ही दिखलाते हैं। बरस अंगारे जाते हैं। बहा करते हैं पानी बन। मगर ये आग लगाते हैं।5। बीज हित का बो देते हैं। कसर कितनी खो देते हैं। बहुत ही धीरे धीरे बह। मैल जी का धो देते हैं।6। डरे बहुतेरे मिलते हैं। कलेजे कितने हिलते हैं। फूँक देते हैं महलों को। ये कभी आग उगिलते हैं।7। कब नहीं दिखलाते हैं तर। पर जलाते हैं लाखों घर। बड़े हैं नरम मगर इन से। मोम हो जाता है पत्थर।8। साँसतें कितनी सहते हैं। फिसलते गिरते रहते हैं। न जाने किसका लहू कर। लहू से भर भर बहते हैं।9। हमारा चित उमगता है। रंग में उन के रँगता है। खबर कैसे न उन्हें होगी। तार आँसू का लगता है।10। नहीं कटतीं काटे घड़ियाँ नहीं मिलतीं क्यों हित कड़ियाँ। टूटती ही जाती हैं क्यों। हमारी मोती की लड़ियाँ।11। आँख से आँख मिला देखो। चाह की थाह लगा देखो। डूबता ही जाता है जी। झड़ी आँसू की आ देखो।12। नाम बिकता है तो बिक ले। राह छिकती है तो छिक ले। खोज में तेरी ही प्यारे। आँख से आँसू हैं निकले।13। कँपा तो जाय कलेजा कँप। नपी तो गरदन जाये नप। टकटकी लगी आज भी है। टपकते हैं आँसू टप टप।14। याद तेरी ही आती है। छ टुकड़े होती छाती है। बरस बन गये हमारे दिन। आँख आँसू बरसाती है।15।

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