निजता
हैं डराते न राजसी कपड़े। क्यों रहे वह न चीथड़े पहने। धूल से तन भरा भले ही हो। हैं लुभाते न फूल के गहने।1। है धानी तो धानी रहे कोई। है उसे लाख पास का पैसा। घूर पर बैठ दिन बिताती है। सेज पर आँख डालना कैसा।2। हों किसी के महल बड़े ऊँचे। वह उन्हें देख ही नहीं पाती। क्यों न होवे गिरी पड़ी टूटी। झोंपड़ी है उसे बहुत भाती।3। लोग खायें मिठाइयाँ मेवे। घर में हो दूधा की नदी बहती। है उसे साग पात से मतलब। वह नहीं मुँह निहारती रहती।4। बाल कर आसमान पर दीया। क्यों किसी की न जोत हो जगती। देख कर आँख और की मुँदती। है गरीबी उसे भली लगती।5। लोग सारी सवारियों पर चढ़। नित फिरें क्यों न मूँछ फटकारे। देख उन से अनेक को पिसते। हैं उसे पाँव ही बहुत प्यारे।6। पीसना पेरना नहीं भाता। कब किसी को कहाँ सताती है। क्यों बने लोग-बाग-वाली वह। बे कसी ही उसे बसाती है।7। क्यों ललाती रहे ललक में पड़। किसलिए हो सुखी लहू गारे। चींटियों सी चली न कब बच बच। भिड़ नहीं है कि डंक वह मारे।8। सादगी को पसंद करती है। बेबसी देख है सुखी रहती। साहबी क्यों न हो बड़ी सबसे। वह उसे है लहू भरी कहती।9। गोद में आन बान की सोई। देखती है बडे बड़े सपने। रोब की मानती नहीं निजता। मस्त रहती है रंग में अपने।10।

Read Next