कलपता कलेजा
मैं ऊब ऊब उठती हूँ। क्या ऊब नहीं तुम पाते। आ कर के अपना मुखड़ा क्यों मुझे नहीं दिखलाते।1। मैं तड़प रही हूँ, जितना। किस तरह तुम्हें बतलाऊँ। यह मलता हुआ कलेजा। कैसे निकाल दिखलाऊँ।2। जो दर्द देखना चाहो। तो मुझे याद कर रो लो। अपने मोती से प्यारे। मेरे मोती को तोलो।3। मेरे सुख की राहों में। दुखड़े काँटे बोते हैं। बन गयी बावली इतनी। बन के पत्ते रोते हैं।4। आहें हैं बहुत सतातीं। दम घुटता ही रहता है। मेरी आँखों का आँसू। लहू बन बन बहता है।5। तब जी जाता है छितरा। हैं सब अरमान कलपते। ये मेरे दिल के छाले। जब हैं बे तरह टपकते।6। बे चैन बनी रहती हूँ। मेरे तन मन हैं हारे। दिन काट रही हूँ रो रो। रातों में गिन गिन तारे।7। है सोच सुन सकूँगी क्या। वे मीठी मीठी बातें। फिर दिन वैसे क्या होंगे। आएँगी क्या वे रातें।8।

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