मिटना
रंग बू फूल नहीं रखता। धूल में जब मिल जाता है। सूख जाने पर पत्ते खो। फल नहीं पौधा लाता है।1। गँवाते हैं अपना पानी। बिखर जब बादल जाते हैं। गल गये दल रस के निचुड़े। कमल पर भौंर न आते हैं।2। नहीं जब सर में जल होता। कहाँ तब वह लहराता है। चाँद खो कर अपनी किरणें। नहीं रस बरसा पाता है।3। जोत किसने उस में पाई। आँख जब अंधी है होती। दिये की बुझी हुई बत्ती। अँधेरा कभी नहीं खोती।4। नहीं उसकी आँखें खुलतीं। सूझ जिसकी सब दिन सोई। रखा क्या मिट जाने में है। किसलिए मिटाता है कोई।5। सदा जल जल कर के दीया। उँजाला करता रहता है। भला औरों का करने को। फूल छिदता सब सहता है।6। बीज मिट्टी में मिल मिल कर। अन्न कितने उपजाते हैं। पेट लोगों का भरता है। मगर फल कटते जाते हैं।7। तब किसे नहीं पिलाती रस। ऊख जब पेरी जाती है। क्या नहीं देती है किस को। ठोकरें धरती खाती है।8। खिंचे ताने बाँधो टाँगे। चाँदनी करती है साया। सुख नहीं किसको पहुँचाती। पाँव के नीचे पड़ छाया।9। भलाई अगर नहीं भाती। काम क्या आई तो काया। नहीं उस को मरते देखा। जिसे है मर मिटना आया।10।

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