फूल - 1
किस लिए तो रहे महँकते वे। कुछ घड़ी में गई महँक जो छिन। क्या खिले जो सदा खिले न रहे। क्या हँसे फूल जो हँसे दो दिन।1। पंखड़ी देख कर गिरी बिखरी। हैं कलेजे न कौन से छिलते। क्या गया भूल तब भ्रमर उन पर। जब रहे फूल धूल में मिलते।2। यह बताता हमें नहीं कोई। क्या मिलेगा वहाँ जहाँ खोजें। जो कि जी की कली खिलाता था। आज उस फूल को कहाँ खोजें।3। रंग है वह नहीं फबन है वह। है नहीं वह महक नहीं वह रस। अब कहाँ फूल का समाँ है वह। धूल में पंखुड़ी पड़ी है बस।4। रह गया फूल ही नहीं अब तो। सज सकेंगी न पास की फलियाँ। साथ किस के फबन दिखा अपनी। रंगरलियाँ मनाएँगी कलियाँ।5। रोज के सैकड़ों बखेड़ों में। वे न जायें बुरी तरह फाँसे। है खिलाती खुली हवा उनको। फूल हैं ओस बूँद के प्यासे।6। है न गोरा बदन पसंद उसे। हैं न भाती कलाइयाँ न्यारी। क्यों न उसमें भरे रहे काँटे। हैं हरी डाल फूल को प्यारी।7। फूल से पूछता अगर कोई। तो बिहँस वह यही बात पाता। काम के हैं महल न सोने के। हैं हमें बन हरा भरा भाता।8। हैं न गहने पसंद सोने के। हैं न हीरे जड़े मुकुट भाते। हैं लुभाते उन्हें हरे पत्ते। हैं कली देख फूल खिल जाते।9। चाह उसको न मंदिरों की है। वह मठों से न रख सका नाते। फूल का प्यार क्यारियों से है। हैं बगीचे उसे बहुत भाते।10। तितलियाँ नोचने लगीं कुढ़ कर। तंग करने लगे भ्रमर भूले। आ लगाने लगी हवा धौलें। कौन फल फूल को मिला फूले।11। है सताता समीप आ भौंरा। तितलियों ने न कब सितम ढाया। छेदता बेधता रहा माली। फूल ने रंग रूप क्यों पाया।12। पिंड छूटा कभी न भौंरों से। बे तरह तन हवा लगे हिलता। मालियों से मिला न छुटकारा। है कहाँ चैन फूल को मिलता।13। छेदता है घड़ी घड़ी माली। गाँव घर किस तरह भला भावे। कम बखेड़े न बाग बन में हैं। क्या करे फूल औ कहाँ जावे।14। है हवा चोर मतलबी माली। क्या करे वह कि जी बचे जिससे। भौंरे हैं ढीठ तितलियाँ हलकी। फूल मुँह खोल क्या कहे किससे।15।

Read Next