दूर न रह, धुन बँधने दे
दूर न रह, धुन बँधने दे मेरे अन्तर की तान, मन के कान, अरे प्राणों के अनुपम भोले भान। रे कहने, सुनने, गुनने वाले मतवाले यार भाषा, वाक्य, विराम बिन्दु सब कुछ तेरा व्यापार; किन्तु प्रश्न मत बन, सुलझेगा- क्योंकर सुलझाने से? जीवन का कागज कोरा मत रख, तू लिख जाने दे।

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