दुर्गम हृदयारण्य दण्ड का
दुर्गम हृदयारण्य दण्डका- रण्य घूम जा आजा, मति झिल्ली के भाव-बेर हों जूठे, भोग लगा जा! मार पाँच बटमार, साँवले रह तू पंचवटी में, छिने प्राण-प्रतिमा तेरी भी, काली पर्ण-कुटी में। अपने जी की जलन बुझाऊँ, अपना-सा कर पाऊँ, "वैदेही सुकुमारि कितै गई" तेरे स्वर में गाऊँ।

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