हरा हरा कर, हरा
हरा हरा कर, हरा- हरा कर देने वाले सपने। कैसे कहूँ पराये, कैसे गरब करूँ कह अपने! भुला न देवे यह ’पाना’- अपनेपन का खो जाना, यह खिलना न भुला देवे पंखड़ियों का धो जाना; आँखों में जिस दिन यमुना- की तरुण बाढ़ लेती हूँ पुतली के बन्दी की पलकों नज़र झाड़ लेती हूँ।

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