जहाँ से जो ख़ुद को
जहाँ से जो ख़ुद को जुदा देखते हैं ख़ुदी को मिटाकर ख़ुदा देखते हैं । फटी चिन्धियाँ पहिने, भूखे भिखारी फ़कत जानते हैं तेरी इन्तज़ारी बिलखते हुए भी अलख जग रहा है चिदानंद का ध्यान-सा लग रहा है । तेरी बाट देखूँ, चने तो चुगा जा, हैं फैले हुए पर, उन्हें कर लगा जा, मैं तेरा ही हूँ इसकी साखी दिला जा, ज़रा चुहचुहाहट तो सुनने को आ जा, जो तु यों इछुड़ने- बिछुडने लगेगा तो पिंजड़े का पंछी भी उड़ने लगेगा ।

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