यह चरण ध्वनि धीमे-धीमे
यह चरण ध्वनि धीमे-धीमे! भाग्य खोजता है जीवन के खोये गान ललाम इसी में, यह चरण ध्वनि धीमे-धीमे! अन्धकार लेकर जब उतरी नव-परिणीता राका रानी, मानों यादों पर उतरी हो खोई-सी पहचान पुरानी; तब जागृत सपने में देखा मेरे प्राण उदार बहुत हैं! पर झिलमिल तारों में देखा ’उनके पथ के द्वार बहुत हैं’, गति न बढ़ाओ, किस पथ जाऊँ, भूल गया अभिराम इसी में, यह चरण ध्वनि धीमे-धीमे! जब स्वर्गंगा के तारों ने आँखों के तारे पहिचाने कोटि-कोटि होने का न्यौता देने लगे गगन के गाने, मैं असफल प्रयास, यौवन के मधुर शून्य को अंक बनाऊँ तब न कहीं, अनबोली घड़ियों तेरी साँसों को सुन पाऊँ मंदिर दूर, मिलन-बेला- आगई पास, कुहराम इसीमें यह चरण ध्वनि धीमे-धीमे! बाँट चले अमरत्व और विश्वास कि मुझसे दूर न होंगे! मानो ये प्रभात तारों से सपने चकनाचूर न होंगे। पर ये चरण, कौन कहता है अपनी गति में रुक जावेंगे, जिन पर अग-जग झुकता है वे मेरे खातिर झुक जावेंगे? अर्पण? और उधार करूँ मैं? ’हारों’ का यह दाम? लुटी मैं! यह चरण ध्वनि धीमे-धीमे! चिड़ियाँ चहकीं, तारों की- समाधि पर, नभ चीत्कार तुम्हारी! आँख-मिचौनी में राका-रानी ने अपनी मणियाँ हारीं। इस अनगिन प्रकाश से, गिनती के तारे कितने प्यारे थे? मेरी पूजा के पुष्पों से वे कैसे न्यारे-न्यारे थे? देरी, दूरी, द्वार-द्वार, पथ- बन्द, न रोको श्याम इसी में यह चरण ध्वनि धीमे-धीमे! हो धीमे पद-चाप, स्नेह की जंजीरें सुन पड़ें सुहानी दीख पड़े उन्मत्त, भारती, कोटि-कोटि सपनों की रानी यही तुम्हारा गोकुल है, वृन्दावन है, द्वारिका यहीं है यहीं तुम्हारी मुरली है लकुटी है, वे गोपाल यहीं हैं! ’गोधूली’ का कर सिंगार, मग जोह-जोह लाचार झुकी मैं। यह चरण ध्वनि धीमे-धीमे!

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