नाद की प्यालियों, मोद की ले सुरा
नाद की प्यालियों, मोद की ले सुरा गीत के तार-तारों उठी छा गई प्राण के बाग में प्रीति की पंखिनी बोल बोली सलोने कि मैं आ गई! नेह दे नाथ क्या नृत्य के रंग में भावना की रवानी लुटाने चले? साँस के पास आ, हास के देस छा, याद को झुलने में झूलाने चले! प्रेम की जन्म-गाँठों जगी मंगला- राग वीणा प्रवीणा सखी भारती, आज ब्रह्माण्ड के गोपिका गा उठी सूर्य की रश्मियों श्याम की आरती! जो उँड़ेली कृपा झोलियाँ, प्यार के-- देश ने, आँसुओं में बहीं, आ गई; प्राण के बाग में प्रीत की पंखिनी कूक उट्ठी सवेरे कि मैं आ गई!

Read Next