खोने को पाने आये हो
खोने को पाने आये हो? रूठा यौवन पथिक, दूर तक उसे मनाने आये हो? खोने को पाने आये हो? आशा ने जब अँगड़ाई ली, विश्वास निगोड़ा जाग उठा, मानो पा, प्रात, पपीहे का- जोड़ा प्रिय बन्धन त्याग उठा, मानो यमुना के दोनों तट ले-लेकर यमुना की बाहें- मिलने में असफल कल-कलमें- रोयें ले मधुर मलय आहें, क्या मिलन-मुग्ध को बिछुड़न की, वाणी समझाने आये हो? खोने को पाने आये हो? जब वीणा की खूँटी खींची, बेबस कराह झंकार उठी, मानो कल्याणी वाणी, उठ- गिर पड़ने को लाचार उठी, तारों में तारे डाल-डाल मनमानी जब मिजराब हुई, बन्धन की सूली के झूलों- की जब थिरकन बेताब हुई, तुम उसको, गोदी में लेकर, जी भर बहलाने आये हो? खोने को पाने आये हो? जब मरे हुए अरमानों की तुमने यों चिता सजाई है, उस पर सनेह को सींचा है, आहों की आग लगाई है, फिर भस्म हुई आकांक्षाओं- की माला क्यों पहिनाते हो? तुम इस बीते बिहाग में सोरठ की मस्ती क्यों लाते हो? क्या जीवन को ठुकरा- मिट्टी का मूल्य बढ़ाने आये हो? खोने को पाने आये हो? वह चरण-चरण, सन्तरण राग मन भावन के मनहरण गीत- बन; भावी के आँचल से जिस दिन झाँक-झाँक उट्ठा अतीत, तब युग के कपड़े बदल-बदल कहता था माधव का निदेश, इस ओर चलो, इस ओर बढ़ो! यह है मोहन का प्रलय देश, सूली के पथ, साजन के रथ- की राह दिखाने आये हो? खोने को पाने आये हो?

Read Next