मैं नहीं बोला, कि वे बोला किये
मैं नहीं बोली, कि वे बोला किये। हृदय में बेचैन मुख खोला किये, दो हृदय ले, तौल पर तौला किये। यह न था बाजार, पर उनके तराजू हाथ में थी, क्रोध के थे, किन्तु उनके बोल थे कि सनाथ मैं थी, सुघढ़, मन पर गर्व को तौला किये, झूलती, प्रभु-बोल का डोला किये, मैं नहीं बोली, कि वे बोला किये। आज चुम्बन का प्रलोभन स्नेह की जाली न डाली, नहीं मुझ पर छोड़ने को प्रेम की नागिन निकाली, सजनि मेरे प्राणों का झोला किये; डालते थे प्यार को, वे क्रोध का गोला किये, मैं नहीं बोली, कि वे बोला किये। समय सूली-सा टँगा था, बोल खूँटी से लगे थे, मरण का त्यौहार था सखि, भाग जीवन-धन जगे थे, रूप के अभिमान में जी का जहर घोला किये, मैं नहीं बोली, कि वे बोला किये।

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