सूझ का साथी
सूझ, का साथी- मोम-दीप मेरा! कितना बेबस है यह जीवन का रस है यह छनछन, पलपल, बलबल छू रहा सवेरा, अपना अस्तित्व भूल सूरज को टेरा- मोम-दीप मेरा! कितना बेबस दीखा इसने मिटना सीखा रक्त-रक्त, बिन्दु-बिन्दु झर रहा प्रकाश सिन्धु कोटि-कोटि बना व्याप्त छोटा सा घेरा! मोम-दीप मेरा! जी से लग, जेब बैठ तम-बल पर जमा पैठ जब चाहूँ जाग उठे जब चाहूँ सो जावे, पीड़ा में साथ रहे लीला में खो जावे! मोम-दीप मेरा! नभ की तम गोद भरें- नखत कोटि; पर न झरें पढ़ न सका, उनके बल जीवन के अक्षर ये, आ न सके उतर-उतर भूल न मेरे घर ये! इन पर गर्वित न हुआ प्रणय गर्व मेरा मेरे बस साथ मधुर- मोम-दीप मेरा! जब चाहूँ मिल जावे जब चाहूँ मिट जावे तम से जब तुमुल युद्ध- ठने, दौड़ जुट जावे सूझों के रथ-पथ का ज्वलित लघु चितेरा! मोम-दीप मेरा! यह गरीब, यह लघु-लघु प्राणों पर यह उदार बिन्दु-बिन्दु आग-आग प्राण-प्राण यज्ञ ज्वार पीढ़ियाँ प्रकाश-पथिक जग-रथ-गति चेरा! मोम-दीप मेरा!

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