फूल की मनुहार
बिन छेड़े, जी खोल सुगन्धों को जग में बिखरा दूँगा; उषा-राग पर, दे पराग की भेंट, रागिनी गा दूँगा; छेड़ोगे, तो पत्ती-पत्ती चरणों पर बिखरा दूँगा; संचित जीवन साध कलंकित न हो, कि उसे लुटा दूँगा; किन्तु मसल कर सखे! क्रूरता-- की कटुता तू मत जतला; मेरे पन को दफना कर अपनापन तू मुझ पर मत ला।

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