अमर-अमर
कलम चल पड़ी, और आज लिखने बैठी हैं युग का जीवन, विहँस अमरता आ बैठी त्योहार मनाने मेरे आँगन। पानी-सा कोमल जीवन बादल-सा बलशाली हो आया, भू पर मेरी तरुणाई का हँस-हँस कर अमरत्व सजाया। जगत ललक कर दौड़ा मेरी अंगुलियों पर चक्कर खाने, मेरी साँसों, समय आ गया युग-प्रभु का अभिमान सजाने। अमर-अमर कह, झर-झर झरते, बादल ने अभिषेक सजाया, अमर हो पड़ीं साधें, अमर, अमर जीवन का रस चढ़ आया।

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