दूर गई हरियाली
एक मौत पर, दूजे दिल पर, और तीसरे ’उन पर’ आली, मेरा बस न चलाये चलता, साधें रीतीं, आँखें खाली! अब तो दूर गई हरियाली बिजली का सिर चढ़ चढ़ जाना, श्याम घनों का गल-गल गिरना, कैसे दो वरदान, मिले हैं, उन्हें गरजना, मेरा झरना। ज्वारों से बेकाबू वे सखि, आहों-सी लाचारी मेरी; आह और आँसू जैसी है, प्रणय विवशता उनकी मेरी। काले नभ में खेल रहे हैं, सूरज, चन्दा, झिलमिल तारे; कैसे सुन्दरता खोएँगे, वे पुतली के वासी प्यारे! चिडियाँ चहक-चहक उठती हैं, ऊषा की लख आली आली, किन्तु लाल की लाली से यह जी की डाल नहीं मतवाली। अब तो दूर गई हरियाली

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