आने दो
मत रूठो ओ भाव-रंगिनी, स्वर पर कुछ निखार आने दो! सौ उसाँस पर एक साँस की नागन बार-बार आने दो। गोदी में लो, कान उमेठो, गले लगाओ, शत शिर डोलें, पर वीणा में आँसू-सा असहाय न तुम उतार आने दो। मत रूठो ओ भाव-रंगिनी, स्वर पर कुछ निखार आने दो! वे कहते हैं, मिजराबों की मारों में उतरो गीर्वाणी, मैं कहता हूँ लय से ध्वनि तक झंकृति का उभार आने दो। मत रूठो ओ भाव-रंगिनी, स्वर पर कुछ निखार आने दो! सूजी से सिर छेद-छेद कर, गूँथो फूल, हार दो रानी, तुम इतना दो घना कि घन यह कह न पाय खुमार आने दो। मत रूठो ओ भाव-रंगिनी, स्वर पर कुछ निखार आने दो! तेरी उनकी प्रीत पुरातन, युग-युग, बोल-बोल कर डोले, घनश्याम उतरे गोकुल में, जमुना में बहार आने दो। मत रूठो ओ भाव-रंगिनी, स्वर पर कुछ निखार आने दो! तोड़ चलो ’नवघा’ की कारा शतघा उतर उठो ओ रामा! गायें, ग्वाल, नंद, नँदरानी सबको एक बार आने दो। मत रूठो ओ भाव-रंगिनी, स्वर पर कुछ निखार आने दो!

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