स्मृति का वसन्त
स्मृति के मधुर वसंत पधारो! शीतल स्पर्श, मंद मदमाती मोद-सुगंध लिये इठलाती वह काश्मीर-कुंज सकुचाती निःश्वासों की पवन प्रचारो स्मृति के मधुर वसंत पधारो! तरु दिलदार, साधना डाली लिपटी नेह-लता हरियाली वे खारी कलिकाएँ उन पर तोड़ूँगी, ऋतुराज उभारो स्मृति के मधुर वसंत पधारो! तोड़ूँगी? ना, खिलने दूँगी दो छिन हिलने-मिलने दूँगी हिला-डुला दूँगी शाखाएँ चुने विश्व-परिवार उचारो स्मृति के मधुर वसंत पधारो! आते हो? वह छबि दरसा दो रूठा हृदय-चोर हरषा दो तोड़-तोड़ मुकता बरसा दो डूबूँ-तैरूँ, सुध न बिसारो स्मृति के मधुर वसंत पधारो! दोनों भुजा पकड़ ले पापी! कलपा मत घनश्याम! कलापी, कर दो दशों दिशा पागलिनी ज्ञान-जरा-जर्जरता टारो स्मृति के मधुर वसंत पधारो! भीजे अम्बर वाले ख्याली चढ़ तरुवर की डाली डाली उड़े चलो मेरे वनमाली! पागलिनी कह, वहाँ पुकारो स्मृति के मधुर वसंत पधारो! नहीं चलो हिल-मिलकर झूलें बने विहंग, झूलने झूलें भूलें आप, भुला दें घातक! भू-मंडल पर स्वर्ग उतारो स्मृति के मधुर वसंत पधारो! नहीं, चलो हम हों दो कलियाँ मुसक-सिसक होवे रंगरलियाँ राष्ट्रदेव रँग-रँगी सँभालो कृष्णार्पण के प्रथम पधारो स्मृति के मधुर वसंत पधारो!

Read Next