मुक्ति का द्वार
मेरे गो-कुल की काली रातों के ऐ काले सन्देश, रे आ-नन्द-अजिर के मीठे, प्यारे घुँघराले सन्देश। कृष-प्राय, कृषकों के, आ राधे लख हरियाले सन्देश, माखन की रिश्वत के नर्तक, मेरे मतवाले सन्देश, जरा गुद-गुदा दे पगथलियाँ, किलक दतुलियाँ दीखें तो। चुटकी ले लेने दे, चिढ़े अहीरी-तू कुछ चीखे तो। अरे कंस के बन्दी-गृह की, उन्मादक किलकार! तीस करोड़ बन्दियों का भी खुल जाने दे द्वार।

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