नीलिमा के घर
यह अँगूठी सखि निरख एकान्त की, जड़ चलो हीरा उपस्थिति का, सुहागन जड़ चलो। दामिनी भुज की--सयम की--अँगुली छिगुनी, पहिन कर बैठे जरा नीलम भरे जल-खेत में, साढ़साती हो, पहिन लो समय, नग जड़ी, नीलम लगी है यह अँगूठी! नील तुम, फिर नील नग, फिर नील नभ, फिर नील सागर, नीलिमा के घर अनोखी नीलिमा की छवि सलोनी नीलिमा के घर पधारे आज नीतोत्पल सदृश भगवान मेरे! और पानी हों बरसते गान मेरे! लुट गये नभ के दिये वरदान मेरे! अब हँसा तो, बिजलियाँ चमकें, कि हीरक हार दीखे, फिर यशोदा को कि माटी भरे मुख में प्यार दीखे, ज्वार दीखे! और नव संसार दीखे।

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