यह आवाज
और यह आई मधुर आवाज-सी जब प्रलय ने नेत्र खोला किन्तु मानव था, न डोला बादलों ने घुमड़ कर जब बिजलियों का ज्वार खोला। कुछ गिरे पाषाण कुछ आये बवन्डर थरथराए कुछ बदन कुछ गिर गये घर, कुछ अँधेरा बढ़ा दृग छाई अँधेरी कुछ कलेजा कँपा पथ में लगी देरी, किन्तु सहसा टूट कर, पानी हुआ अभिमान उनका, और मस्ती से हरा ऊगा धरा पर आज तिनका। मैं बड़ों का पतन चित्रित कर उठा, और यह आई मधुर आवाज-सी।

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