बोल नये सपने
कहानी बोल नये सपने! अरी अभागिन, पहिले ही क्यों ओंठ लगे कँपने? कहानी बोल नये सपने! देख तो, प्राण में एक तूफान-सा लोटता-सा चला जा रहा है कहाँ? व्यक्ति-वामन, उठा आ रहा पैर ले एक रक्खे यहाँ, एक रक्खे वहाँ; श्रृंखला सागरों को पिन्हाता हुआ-सा गगन खेल-घर-सा बनाता हुआ, हर लहर में नया स्वाद लाता हुआ हर बहर में नया जग बनाता हुआ- पंख खोल अपने कहानी बोल नये सपने!

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