हरियालेपन की साध
गौरव-शिखरों! नहीं, समय की मिट्टी में मिलवाओ, फिर विन्ध्या के मस्तक से करुणा-घन हो झरलाओ, पृथिवी के आकर्षण के प्रतिकूल उठूँ, दिन लाओ, जल से प्रथम मुझे आतप की किरणों में नहलाओ! कई गुना होकर अर्पित यह मिट्टी में मिल जाना; हरियाला मस्ताना दाना कहे कि तुझको जाना।

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