पास बैठे हो
चट जग जाता हूँ, चिराग को जलाता हूँ, हो सजग तुम्हें मैं देख पाता हूँ कि पैठे हो; पास नहीं आते, हो पुकार मचवाते, तकसीर बतलाओ क्यों यों बदन उमैठे हो? दरश दिवाना, जिसे नाम को ही बाना, उसे शरण विलोकते भी देव-देव ऐंठे हो; सींखचों में घूमता हूँ, चरणों को चूमता हूँ, सोचता हूँ, मेरे इष्टदेव पास बैठे हो।

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