तुम्हारा मिलन
तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई! भूलती-सी जवानी नई हो उठी, भूलती-सी कहानी नई हो उठी, जिस दिवस प्राण में नेह-बंशी बजी, बालपन की रवानी नई हो उठी; कि रसहीन सारे बरस रसभरे हो गये— जब तुम्हारी छटा भा गई। तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई! घनों में मधुर स्वर्ण-रेखा मिली नयन ने नयन रूप देखा, मिली— पुतलियों में डुबा निज नजर की कलम नेह के पृष्ठ को चित्रलेखा मिली; बीतते-से दिवस लौट कर आ गये बालपन ले जवानी सँभल आ गई। तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई! तुम मिले तो प्रणय पर छटा छा गई! चुम्बनों, साँवली-सी घटा छा गई, एक युग, एक दिन, एक पल, एक क्षण पर गगन से उतर चंचला, आ गई! प्राण का दान दे, दान में प्राण ले, अर्चना की अधर चाँदनी छा गई। तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई!

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