गोधूली है
अन्धकार की अगवानिन हँस कर प्रभात सी फूली है, यह दासी धनश्याम काल की ले चादर बूटों वाली उढ़ा नाथ को, यह अनाथ होने के पथ में भूली है! गोधूली है। टुन-टुन क्वणित, कदम्ब लोक से, ले गायें धीमे-धीमे रज-पथ-भूषित जग-मुख कर, केसर आँखों जब झूली है। गोधूली है। नभ चकचौंधों से घबड़ाती, रवि से कुछ रूठी-रूठी; नभ-नरेश को उढ़ा, स्वयं ही आत्म-घात-पथ भूली है डाह भरी के कर में दे दी, तम की सूली है। गोधूली है।

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